Saturday, November 28, 2009

my story

परिस्थिति के बोझ तले
दबा एक अंकुर
समय से पहले मांगे
चीजें वो बहुत कुछ

है उसे भी ये संज्ञान मगर
दिन ढले रात आती है
पर सवेरा दूर नहीं प्यारे
थोरी देर तो ठहर

तुझे तारों से है क्यूँ नफरत इतनी
पूछ क्यूँ जलती बुझती है उनकी रौशनी
सूरज का तेज तुझे पसंद है
इसलिए तुझमे धीरज जरा कम है

अंकुर होना कोई गौरव नहीं
तुझे अभी विशाल पेड़ बनना है
फिर दे सकेगा तू छाया सबको
लक्ष्य है यही तेरा धरती पर

जिंदगी कोई साठ बरस की कहानी नहीं
ये तो अनवरत चलती एक कथा है
जिसमे आये- जाये कलाकार यूँ ही
चलते रहना ही जिनका धर्म है

है तुझे बनना कोई महान
तो कर समय का सम्मान
करवट बदलेगी ये किसी भी पल
चलना मगर तू एक समान

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