Monday, May 10, 2010

की तू बेवफा न कहलाये

क्या तेरे जाने का गम मनाया जाए
या कोई नया मुकाम पाया जाए
क्या करूं जो हर वक़्त तेरी याद आये
तेरी तस्वीर भी नहीं जो दिल बहलाए
वक़्त के सितम पर बस हँसी आये
तुझे कसम है मेरी अगर याद भी आये
तू खुश रहे आबाद रहे यही जी चाहे
आज तुझे कोई नाम दूँ की तू बेवफा न कहलाये

Monday, May 3, 2010

आज फिर से एक ख्वाब टूटा पाया

एक दिन खुद-ब-खुद तेरी चौखट की ओर कदम बढाया
और लाँघ कर देहलीज़ अपनी रौशन की तेरी दुनिया
हर आंसूं तेरी अपना बनाया और हर गम अपनाया
तू जो हँसा तो भी खुद को अश्कों में पाया
मालूम नहीं पिछली बार मै कब मुस्कराया
पर हर पल तुझमे खुद को हँसते हुए पाया
आज लिखते लिखते भी तेरे लिए दिल भर आया
तेरी ख्वाहिश को पूरा होते मै न देख पाया
अब आहिस्ता-आहिस्ता कदम मैंने लौटाया
फिर मिलना चाहूँगा तुझसे यही दोहराया
बहुत हुआ शायद तुझे फिर से न समझ आया
आज फिर से एक ख्वाब टूटा पाया

Friday, April 16, 2010

शांति शांति शांति

नए सवेरे की आशा हमें कितनी आत्मविभोर कर देती है,कभी ओस की नन्ही चमचमाती बूंदों से पूछिए या फिर दूर तक फैली कोहरे के उजले बादलों से.हाँ सचमुच अचंभित कर देता है की ऐसे नए सवेरे की तलाश क्या हर किसी को है .या सिर्फ कल्पना में डूबे उन कवियों को जो नित्य प्रकृति को अपनी बाहों में समेटे दूर चले जाते हैं उन पहारों के बीच जहाँ सिर्फ और सिर्फ आत्मा होती है हमसे बात करने को और कुछ भी नहीं ..शांति शांति शांति ..

Thursday, April 15, 2010

O my mother

O my mother
Take me in your lap
And I will forget this world forever
O my mother
Kiss once on my forehead
And I will forget this pain forever
O my mother
Tell me again that fairy story
And I will listen it forever
O my mother
Come once in my dream
And I’m sure that dream will last forever.

Monday, April 5, 2010

हाँ कल रात मैंने एक आवाज़ सुनी
बड़ी करुणामयी बड़ा दर्द था उसमे
शायद वो जैसे बेसहारा भटक रही थी
और जैसे मेरे कानो से होकर
दिल में बैठ सुकून महसूस कर रही थी
कुछ नमी जरूर आई मेरी आँखों में
पर जैसे ममता बिखेरती माँ सामान
मैंने उसे प्यार से सहलाया
और पुछा क्यूँ है इतनी उदास
मै जो हूँ तेरे साथ
फिर वो जैसे खिल उठी
और बोली मै हूँ तेरी परछाई
तेरी तन्हाई की सखी
जो तू अगर मुस्कुराये तो
होती हूँ गुम
वरना बिलखती रहती हूँ
कोने में पड़ी सुकदूम
मैंने बोला सुन ए सखा
तुझसे मेरी न दोस्ती न दुश्मनी
पर एक बात है ए अजनबी
रहूँगा न अब मै तनहा कभी
दुःख मेरा जो है साथी अभी ...

Sunday, March 28, 2010

मुझे तो सिर्फ तेरे लिए मरना है

आजकल बहुत थक गया हूँ मै ..जाने किस गली में भटक गया हूँ मै
यहाँ चेहरे मुझे अछे नहीं लगते ..शायद दिल के सच्चे नहीं लगते
मुझे शिकायत है मगर बताऊँ किसे ..मै पागल नहीं हूँ समझाउं किसे
माँ का दुलारा हूँ मै , मजबूत सहारा हूँ मै
काश मै क़र्ज़ तेरा उतार सकता ..अपनी नैया उस पार उतार सकता
अभी तो इस जहाँ में ही रहना है ..और दर्द ही दर्द सहना है
जीना नहीं है खुद के लिए..मुझे तो सिर्फ तेरे लिए मरना है

काफी नहीं थे मेरे अरमान की कुछ कमी थी

काफी नहीं थे मेरे अरमान की कुछ कमी थी
मेरे हिस्से में तो बस रेतीली जमीं थी
बांधना जब भी चाहा इन बाजुओं में तुझे
फिसलकर तू दिल से चली गयी थी

ये कैसी नज़र मुझे लगी थी
हर खुशी आसुओं के संग मिली थी
यूँ मांग बैठा जो तुझे खुदा से
हाय जैसे बिजली सी मुझ पड गिरी थी

वक़्त के पलकों तले ये ख्वाब भी दब गया
इत्तेफाक ही था मगर एहसास रह गया
हाँ रह-रहकर सताएगी तेरी ये याद
जीने के लिए बाकी अब यही नामोनिशान रह गया

Thursday, March 25, 2010

नही नहीं तू कभी न दिल लगाना

तेरे लिए मर भी जायेंगे तो कम होगा
शायद फिर भी मेरी वफ़ा का असर न होगा
तेरे क़दमों में बिछा दूं अगर सारी खुशियाँ
फिर भी भर न पायेगी तेरी झोली क्या
माना आपके ख्वाब आपको मुझसे ज्यादा प्यारे हैं
एकबारगी वो मिल जाये तो क्या याद आ पाएंगे हम
नहीं बहुत मुश्किल है इस तड़प को अन्दर बाँध पाना
नही नहीं तू कभी न दिल लगाना

Sunday, March 7, 2010

माना की तेरे बिना जिंदगी मेरी जिंदगी न होगी ,
फिर भी इन आँखों में आसुओं की कमी न होगी,
मेरा प्यार मेरी इबादत है खुदगर्जी नहीं ,
तेरी झोली में दुआओं की पोटली ही होगी ...

Thursday, February 25, 2010

Happy holi to all

होली के हुडदंग में..भीगें आप रंग में ..टीका गुलाल का ..शोर धमाल का..थोड़ी जोर-जोरी सही..थोड़ी मन की चोरी सही .आपको पायें हम सदा साथ..होली का यही है उल्लास..आज भीग जाये मोसे तेरा तन मन..क्यूंकि तेरे बिना जीना नहीं है सनम ..

Monday, February 22, 2010

यहाँ आपकी कोई जरूरत नहीं

नहीं भाई मुझे तो अपने गाँव की पोखर के किनारे बैठे मछलियां मारना ही पसंद है..तब तो आप इस ग्लोबलआय्ज़ दुनिया में बहुत ही पिछड़े हुए हैं. ख्वाब देखिये तो ऊँची अट्टालिकाओं का या किसी शानदार रेस्तरां में चम्मचों से खाने का..काश आप कलयुग के सही इंसान को समझ पाते..यहाँ दिमाग से ज्यादा चापलूसी की जरूरत होती है ...और काम से ज्यादा काम टालने की अहमियत होती है..आप तो सतयुग में ही जाईये ..यहाँ आपकी कोई जरूरत नहीं ...

Saturday, February 20, 2010

ek shayari

यूँ तो आपकी नज़र का दुआ -सलाम रोज लेते हैं
कहने को तो हम बेजुबान इशारों से रोज कहते हैं
फिर भी आपकी इज़ाज़त का इंतज़ार रोज करते हैं
मुक़द्दर में हम आपके हैं या नहीं फैसला आप रोज बदलते हैं..

एक हम हैं जो मर मिटे एक मुलाकात पे
ये हुआ तो नहीं बिना जज्बात के
माना बड़े इश्किया मिजाज हम निकले
पर फिसले तो क्या खूब फिसले !!!

मेरा टूटा हुआ एक तारा

मेरा टूटा हुआ एक तारा
डूबता सूरज और नदी का वो किनारा
बहुत देर हो गयी अब न होगा कभी सवेरा
लूट गया मेरा चमन न रहा कोई रैन -बसेरा

अब तूफ़ान को भी यहाँ आने की इजाजत नहीं
उठ गया भरोसा अब कोई इबादत नहीं
चल छोड़ दिया हठ, मिलना हमारा मयस्सर नहीं
इतना करम कर देना मगर, मिलना बन अजनबी नहीं

Friday, January 8, 2010

My best poem ever

आज फिर शाम आयी है
भीनी हवा संग कोई पैगाम लायी है
लगता है मेरी तन्हाई का सामान लायी है

जान पड़ता है पड़ोस में किसी की डोली आयी है
तू फिर से नया घर बसाने आयी है
मेरे कानों में अब तक गूँज रही शहनाई है

आज अम्मा ने भी मुझे जान बुझ कर डांट पिलायी है
यूँ लगता है तू गुस्से में रूठकर मायके चली आयी है
तू नहीं है तो मुन्ने ने भी खूब शैतानी मचायी है

जल्दबाजी में तू अपना सामान यहीं छोड़ आयी है
मेरे हमसफ़र मेरे हमराहवीर वादा क्यों भूल आयी है
एक बार गले लगाले मुझको मेरी स्याही ख़त्म होने को आयी है