मै नैनों की समझूँ मै शब्दों की समझूँ
तू आखें मूंद ले तो धडकनों की समझूँ
मोहे प्रेम की भाषा न समझा
मै सन्यासी इस जहाँ की भी समझूँ
उस जहाँ की भी समझूँ
प्रेम में बड़ी शक्ति है . यह आत्मा को शुद्ध करता है. यह नयी मंजिल की तरफ बढाता है. यह तृप्ति का मार्ग दिखाता है. यह अधूरेपन को पूर्णता में बदलता है.प्रेम को इस कच्ची उम्र में समझना बहुत मुश्किल है. प्रेम को पहचानना भी कठिन है . इसे निभाना भी कठिन है. प्रेम में मिलन एक छोटा सा भाग है. इसके तो अनेक ऐसे भाग हैं जिसमे जीवन की असली सच्चाई छिपी है -जैसे विरह,त्याग , जुदाई , बिछरना, आदि. आज के ज़माने में प्रेम एक छणभंगुर एहसास बन कर रह गया है. कभी प्रेमिका से सम्बन्ध जोड़ते समय तो कभी पत्नी से रिश्ता निभाते वक़्त , यह प्रेम उतना अगाध रूप हासिल नहीं कर पाता है. इस पर सांसारिक ताकतों का बोझ इतना बढ़ जाता है की मनुष्य प्रेम को एक भोग वस्तु समझ बैठता है. प्रेम कोई नश्वर चीज नहीं जिसका सेवन करो और भूल जाओ . ये तो आत्मा की सन्तुष्टि का द्वार है. इसी की तलाश में मानव करोड़ों वर्ष से भटक रहा है मगर किसी शापित मनुष्य की तरह चाह कर भी इससे वंचित है .
'हो त्याग इतना प्रेम में फिर क्यों हो कोई कलह-विषाद,
आसूं इतने बहें तेरे लिए कम पर जाये सागर अपार '
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