Friday, January 8, 2010

My best poem ever

आज फिर शाम आयी है
भीनी हवा संग कोई पैगाम लायी है
लगता है मेरी तन्हाई का सामान लायी है

जान पड़ता है पड़ोस में किसी की डोली आयी है
तू फिर से नया घर बसाने आयी है
मेरे कानों में अब तक गूँज रही शहनाई है

आज अम्मा ने भी मुझे जान बुझ कर डांट पिलायी है
यूँ लगता है तू गुस्से में रूठकर मायके चली आयी है
तू नहीं है तो मुन्ने ने भी खूब शैतानी मचायी है

जल्दबाजी में तू अपना सामान यहीं छोड़ आयी है
मेरे हमसफ़र मेरे हमराहवीर वादा क्यों भूल आयी है
एक बार गले लगाले मुझको मेरी स्याही ख़त्म होने को आयी है