Tuesday, December 6, 2011

rewinding story

वक़्त बड़ी बेवफा दोस्त है. जब रोकना चाहो रूकती नहीं, जब तेज भगाना चाहो भागती नहीं, जब बस में करना चाहो होती नहीं , जब बेलगाम करना चाहो होती नहीं. और भी न जाने कितनी बातें होंगी मगर मै साबित कुछ करना नहीं चाहता बस महसूस करना चाहता हूँ. समय का वो दौर जो मेरा था सिर्फ मेरा. क्या जूनून था क्या जवानी थी क्या सपने थे क्या कहानी थी. रुपहले परदे पे जैसे कोई नायक किरदार के अन्दर समां गया हो और उसे ये याद भी न हो कि इस दुनिया में हर किरदार का रोल पहले ही उस निर्देशक ने लिख रखा है वो चाहकर भी उस किरदार के रोल में वो सब कुछ सच नहीं कर सकता जो लिखा नहीं गया है . सुबह से शाम और फिर शाम से सुबह के बीच जो चीज गतिमान होती है वो है समय. समय किसी का गुलाम नहीं पर हर कोई इसका गुलाम है . मेरे बचपन से लेकर जवानी और जवानी से लेकर बुढ़ापे तक कि तस्वीर मेरी गुलामी का जीता जागता सबूत है. मेरी लिखी कवितायेँ, प्रेम पत्र, और न जाने किस किस रूप में संजोये गए वो हर लम्हे मेरी दासता कि गवाही हैं. फिर कैसे कहूं समय का गुलाम मै नहीं हूँ. जब जिंदगी को पीछे कि दिशा से देखने कि कोशिश करता हूँ तो यही पाता हूँ कि शायद जो हुआ वो सब बस यूँ ही हुआ या सब ऐसा ही होना था. क्या कुछ बदला नहीं जा सकता था क्या सब कुछ पहले से ही तय था. एक फिक्स मैच कि तरह. मेरी उम्र वाले शायद अक्सर खुद से यही पूछते होंगे तो क्या मै भी बस यूँ ही एक सवाल दोहरा रहा हूँ .नहीं ये सवाल नहीं सचाई है मेरी जिंदगी कोई नाटक मंच का किरदार नहीं जो पीछे खड़े प्रोम्प्टर कि गुलाम हो.

मै परछाई हूँ बीते कल कि और गवाह एक आने वाले सवेरे का. मुझसे कुछ छिपा भी नहीं और मुझमे सब समाहित भी नहीं. बस एक छुवन हूँ जिंदगी के बेहतरीन लम्हों कि जो हमने जिए साथ साथ. हर पल संग बिताई उन पलों को निचोरकर बने रंगों का मिश्रण हूँ और जिनको दीवार पर समेटे हमारे ये बच्चे उनका पिता हूँ मै . क्यों ये सब एहसास एक कहानी है और क्यों ये शब्द बहुत घिसे- पिटे हैं. क्योंकि जीवन खुद को बार बार दोहराती है जैसे घडी कि सूई बार - बार एक से लेकर बारह को दोहराती है मगर हर बार वो नयी सी लगती है. जीवन भी कुछ इस घडी कि तरह ही है. बस इसकी चाभी उस अदृश्य के हाथ में होती है............................... to be continued..

Monday, May 10, 2010

की तू बेवफा न कहलाये

क्या तेरे जाने का गम मनाया जाए
या कोई नया मुकाम पाया जाए
क्या करूं जो हर वक़्त तेरी याद आये
तेरी तस्वीर भी नहीं जो दिल बहलाए
वक़्त के सितम पर बस हँसी आये
तुझे कसम है मेरी अगर याद भी आये
तू खुश रहे आबाद रहे यही जी चाहे
आज तुझे कोई नाम दूँ की तू बेवफा न कहलाये

Monday, May 3, 2010

आज फिर से एक ख्वाब टूटा पाया

एक दिन खुद-ब-खुद तेरी चौखट की ओर कदम बढाया
और लाँघ कर देहलीज़ अपनी रौशन की तेरी दुनिया
हर आंसूं तेरी अपना बनाया और हर गम अपनाया
तू जो हँसा तो भी खुद को अश्कों में पाया
मालूम नहीं पिछली बार मै कब मुस्कराया
पर हर पल तुझमे खुद को हँसते हुए पाया
आज लिखते लिखते भी तेरे लिए दिल भर आया
तेरी ख्वाहिश को पूरा होते मै न देख पाया
अब आहिस्ता-आहिस्ता कदम मैंने लौटाया
फिर मिलना चाहूँगा तुझसे यही दोहराया
बहुत हुआ शायद तुझे फिर से न समझ आया
आज फिर से एक ख्वाब टूटा पाया

Friday, April 16, 2010

शांति शांति शांति

नए सवेरे की आशा हमें कितनी आत्मविभोर कर देती है,कभी ओस की नन्ही चमचमाती बूंदों से पूछिए या फिर दूर तक फैली कोहरे के उजले बादलों से.हाँ सचमुच अचंभित कर देता है की ऐसे नए सवेरे की तलाश क्या हर किसी को है .या सिर्फ कल्पना में डूबे उन कवियों को जो नित्य प्रकृति को अपनी बाहों में समेटे दूर चले जाते हैं उन पहारों के बीच जहाँ सिर्फ और सिर्फ आत्मा होती है हमसे बात करने को और कुछ भी नहीं ..शांति शांति शांति ..

Thursday, April 15, 2010

O my mother

O my mother
Take me in your lap
And I will forget this world forever
O my mother
Kiss once on my forehead
And I will forget this pain forever
O my mother
Tell me again that fairy story
And I will listen it forever
O my mother
Come once in my dream
And I’m sure that dream will last forever.

Monday, April 5, 2010

हाँ कल रात मैंने एक आवाज़ सुनी
बड़ी करुणामयी बड़ा दर्द था उसमे
शायद वो जैसे बेसहारा भटक रही थी
और जैसे मेरे कानो से होकर
दिल में बैठ सुकून महसूस कर रही थी
कुछ नमी जरूर आई मेरी आँखों में
पर जैसे ममता बिखेरती माँ सामान
मैंने उसे प्यार से सहलाया
और पुछा क्यूँ है इतनी उदास
मै जो हूँ तेरे साथ
फिर वो जैसे खिल उठी
और बोली मै हूँ तेरी परछाई
तेरी तन्हाई की सखी
जो तू अगर मुस्कुराये तो
होती हूँ गुम
वरना बिलखती रहती हूँ
कोने में पड़ी सुकदूम
मैंने बोला सुन ए सखा
तुझसे मेरी न दोस्ती न दुश्मनी
पर एक बात है ए अजनबी
रहूँगा न अब मै तनहा कभी
दुःख मेरा जो है साथी अभी ...

Sunday, March 28, 2010

मुझे तो सिर्फ तेरे लिए मरना है

आजकल बहुत थक गया हूँ मै ..जाने किस गली में भटक गया हूँ मै
यहाँ चेहरे मुझे अछे नहीं लगते ..शायद दिल के सच्चे नहीं लगते
मुझे शिकायत है मगर बताऊँ किसे ..मै पागल नहीं हूँ समझाउं किसे
माँ का दुलारा हूँ मै , मजबूत सहारा हूँ मै
काश मै क़र्ज़ तेरा उतार सकता ..अपनी नैया उस पार उतार सकता
अभी तो इस जहाँ में ही रहना है ..और दर्द ही दर्द सहना है
जीना नहीं है खुद के लिए..मुझे तो सिर्फ तेरे लिए मरना है