Sunday, November 29, 2009

आज फिर से

तस्वीर का वो आयाम जो मैं बदल नहीं सकता
बीते समय की सुबह-शाम जो मैं बदल नहीं सकता
कागज पे लिखे वो तेरे नाम जो मैं बदल नहीं सकता
याद आ रहे हैं मुझे आज फिर से

तमन्ना-ए-इश्क पे भरी पड़ी थी मजबूरियाँ
सिसकती रातों से भीगा था मेरा हर सावन
तुझको पुकारती रही मेरी हर सांस हर धड़कन
आसूं बहा रहा हूँ मैं आज फिर से

तेरा प्यार मेरी ताकत बना जुदाई मेरी कमजोरी
मंजिल की तरह जो उठे कदम रोक न पाया कोई
सफलता के हर सोपान पे हमने दी तेरे यादों की आहुति
पछता रहा हूँ मैं आज फिर से

की आज जब जिंदगी सागर को मिलने चली है
हर आरजू ख़त्म बस तेरी कमी लगी है
वो राह भला हमने चुनी क्यों थी
खोकर पा रहा हूँ तुझे मैं आज फिर से

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