Sunday, March 28, 2010

काफी नहीं थे मेरे अरमान की कुछ कमी थी

काफी नहीं थे मेरे अरमान की कुछ कमी थी
मेरे हिस्से में तो बस रेतीली जमीं थी
बांधना जब भी चाहा इन बाजुओं में तुझे
फिसलकर तू दिल से चली गयी थी

ये कैसी नज़र मुझे लगी थी
हर खुशी आसुओं के संग मिली थी
यूँ मांग बैठा जो तुझे खुदा से
हाय जैसे बिजली सी मुझ पड गिरी थी

वक़्त के पलकों तले ये ख्वाब भी दब गया
इत्तेफाक ही था मगर एहसास रह गया
हाँ रह-रहकर सताएगी तेरी ये याद
जीने के लिए बाकी अब यही नामोनिशान रह गया

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