Friday, April 16, 2010

शांति शांति शांति

नए सवेरे की आशा हमें कितनी आत्मविभोर कर देती है,कभी ओस की नन्ही चमचमाती बूंदों से पूछिए या फिर दूर तक फैली कोहरे के उजले बादलों से.हाँ सचमुच अचंभित कर देता है की ऐसे नए सवेरे की तलाश क्या हर किसी को है .या सिर्फ कल्पना में डूबे उन कवियों को जो नित्य प्रकृति को अपनी बाहों में समेटे दूर चले जाते हैं उन पहारों के बीच जहाँ सिर्फ और सिर्फ आत्मा होती है हमसे बात करने को और कुछ भी नहीं ..शांति शांति शांति ..

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