Monday, April 5, 2010

हाँ कल रात मैंने एक आवाज़ सुनी
बड़ी करुणामयी बड़ा दर्द था उसमे
शायद वो जैसे बेसहारा भटक रही थी
और जैसे मेरे कानो से होकर
दिल में बैठ सुकून महसूस कर रही थी
कुछ नमी जरूर आई मेरी आँखों में
पर जैसे ममता बिखेरती माँ सामान
मैंने उसे प्यार से सहलाया
और पुछा क्यूँ है इतनी उदास
मै जो हूँ तेरे साथ
फिर वो जैसे खिल उठी
और बोली मै हूँ तेरी परछाई
तेरी तन्हाई की सखी
जो तू अगर मुस्कुराये तो
होती हूँ गुम
वरना बिलखती रहती हूँ
कोने में पड़ी सुकदूम
मैंने बोला सुन ए सखा
तुझसे मेरी न दोस्ती न दुश्मनी
पर एक बात है ए अजनबी
रहूँगा न अब मै तनहा कभी
दुःख मेरा जो है साथी अभी ...

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