Tuesday, December 1, 2009

वो आखिरी रात वो आखिरी मुलाकात और वो रेशमी धागा

आज भी जब वो रात मै याद करता हूँ तो सिहर उठता हूँ. उस रात जब मै अपनी साइकिल पर नेहा के घर की तरफ निकल रहा था तो बस एक ही सवाल मेरे जेहन में बार बार कौंध रही थी की आखिर क्यों आज पहली बार उसने मुझे अपने घर पार्टी में आमंत्रित किया है? हम दोनों आज पिछले तेरह दिनों से नहीं मिले हैं. नेहा मेरी कॉलेज में मेरे साथ पढ़ती है. हम दोनों समाजशात्र में बी.ए. कर रहे हैं और ये हमारा आखिरी साल है. नेहा और हम दोनों की शुरु से ही अच्छी दोस्ती है और हम यकीनी तौर पर एक दूसरे को पसंद करते हैं बिना ये जाने की हमारे परिवारों के बीच एक बहुत बड़ी आर्थिक खाई है जिसे इस जनम में पाट पाना मुश्किल है.

नेहा के पिता शहर के जाने माने वकील हैं और मै एक मामूली क्लर्क का बेटा. मै कई बार नेहा को छोड़ने उसके घर के पास आया था और एकाध बार उसके पिता ने हम दोनों को साथ साथ देखा भी था. हाँ , एक बार नेहा ने मुझे बताया भी था की उसके पिताजी को हम दोनों का मिलना पसंद नहीं और शायद नेहा को अपने जैसे ऊँचे घराने के लोगों के ही साथ रहना चाहिए.तब शायद नेहा ने मुझे बस दोस्त का दर्जा देकर बहस समाप्त कर दी थी. मगर पिछले एक महीने में वो कुछ ज्यादा ही मेरे करीब आ गयी थी. उसे अपना घर एक जेल सा लगने लगा था जहाँ हर कुछ कृत्रिम सा हो . मेरी बाहों में वो जन्नत महसूस करती थी मानो वो अप्सरा बन गयी हो. उसकी मुस्कराहट पे जैसे लाखों मोती झर झर कर जमीं पे बिखरते और मै बच्चों की तरह उनको चुनता रहता. सचमुच ये इश्क-विश्क भी अजीब चीज है, करते सभी हैं पर बहाने अलग अलग.

मै अब उसके घर से करीब पचास मीटर की दूरी पर था . उसके घर की सजावट की रोशनी से पूरा आस-पड़ोस जगमगा उठा था. वैसे तो मैंने अपने हिसाब से सबसे बढ़िया ड्रेस पहन रखी थी पर आते जाते मेहमानों के सामने बिलकुल वेटर लग रहा था. खैर मैंने पार्टी में प्रवेश किया और यूँ ही एकांत में कहीं कोने में जा कर खड़ा हो गया. सबसे पहले नेहा के पिताजी की नज़र मुझ पर पड़ी तो उन्होंने मुझे आमंत्रण के भाव से पूछा की मैंने शरबत क्यों नहीं ली अब तक. मै थोडा झेप्तें हुए अंदाज में बोला जी अभी अभी आया हूँ ले लूँगा,शुक्रिया. फिर उन्होंने पूछा क्या मुझे मालूम है की आज नेहा की सगाई है और ये बात वो सिर्फ मुझे बता रहे हैं क्योंकि बाकी मेहमानों के लिए ये एक सरप्रायज है. मै तभी समझ गया की मेरे यहाँ बुलाने का क्या कारण था. इसी बीच वेटर ने मुझे एक ग्लास शरबत ऑफर की और मैंने स्वीकार कर पर उसने मुझे ग्लास के साथ एक कागज का नोट भी पकराया.

इससे पहले की मै उसे खोलूँ मैंने नजरें इधर इधर घुमाई और देखा की कोई इधर देख तो नहीं रहा और जब मै संतुष्ट हो गया तो मैंने वो टुकड़ा खोला. उसमे लिखा था शामियाने की दाहिनी तरफ एक दरवाजा है उससे होकर अंदर आ जाओ. मैने बिजली की फुर्ती से दरवाजे के भीतर प्रवेश किया तो नेहा को सजे हुए कपड़ों में खड़ा पाया. उसने तेजी से मुझे अपनी ओर खिंचा और इस तरह मेरे गले की ताबीज उसके हाथों में आ गयी. इस पल हम दोनों एक दूसरे के इतने करीब थे जितने कभी नहीं और मुझे मालूम था की अगले ही पल इतने दूर हो जाएँगे जितने कभी नहीं.

हमारी सांसें एक दूसरे से कुछ कहना चाहती थी और शायद धडकनों से वो बात निकल भी रही थी मगर होठों पे अजीब ख़ामोशी थी. मैंने बिना लब्ज खोले उसके हाथों में अपनी ताबीज रख दी और धीरे से कहा की इसे वो मेरी आखिरी निशानी समझ कर रख ले. उसकी आखों में अब दो आसूं छलक आये थे. तभी एक झटके से उसने मेरा दायाँ हाथ पकड़ कर एक रेशमी धागा बांध दिया और फुसफुसाते हुए लब्जों में कहा रिश्ता कोई भी हो वो मुझे खोना नहीं चाहती. अगले ही पल मै शुन्य में चला गया था एकदम भावविहीन और वो बिना मुड़े चली गयी अनंत सागर में मिलने को जैसे बस इसी पल के लिए आसमान से उतर कर आई थी या बस इसी पल उसने अपनी विशाल धाराओं को रोक रखा था.

उस रात मै बस यही सोचता रहा क्या बंधन ऐसे भी हो सकते हैं या फिर कोई किसी से यूँ भी जुड़ सकता है. कुछ भी हो मुझे अनंत डोर में बांध गयी थी नेहा जिससे मै चाह कर भी जुदा नहीं हो सकता था और न हुआ.

2 comments:

  1. अच्छी रचना ।
    हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी टिप्पणियां दें

    कृपया वर्ड-वेरिफिकेशन हटा लीजिये
    वर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:
    डैशबोर्ड>सेटिंग्स>कमेन्टस>Show word verification for comments?>
    इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..कितना सरल है न हटाना
    और उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानिये

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  2. हिंदी चिट्ठाकारी की सरस और रहस्यमई दुनिया में आपके इस सुन्दर चिट्ठे का स्वागत है . चिट्ठे की सार्थकता को बनाये रखें . अगर समुदायिक चिट्ठाकारी में रूचि हो तो यहाँ पधारें http://www.janokti.blogspot.com . और पसंद आये तो हमारे समुदायिक चिट्ठे से जुड़ने के लिए मेल करें janokti@gmail.com
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    जयराम "विप्लव"
    Editor
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